शासन के अंग : विधायिका | Organs Of Government : Legislature

आज हम विधायिका के बारे मे जानकारी प्राप्त करेंगे जो शासन के तीनों अंग मे एक हैं।

शासन के अंग (Organs of Government)

किसी भी सरकार या राजव्यवस्था के सामने मूलतः तीन चुनौतियाँ होती हैं- (क) कानून बनाने की चुनौती, (ख) कानूनों के अनुसार शासन कार्य का संचालन करने की चुनौती तथा (ग) व्यक्तियों के आपसी विवादों या व्यक्ति और सरकार के विवादों के समाधान के लिये कानून -प्रणाली (Legal System) के अनुसार न्याय व्यवस्था (Justice System) संचालित करने की चुनौती । प्रत्येक शासन व्यवस्था में इन तीन मूल चुनौतियों के समाधान के लिये उपाय किये जाते हैं। जिन तीन व्यवस्थाओं के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान किया जाता है, उन्हें शासन के अंग कहते हैं। शासन के तीनों अंग निम्नलिखित हैं-

शासन के अंग (Organs of Government)

  • विधायिका (Legislature) अर्थात् कानून बनाने वाली संस्था
  • कार्यपालिका (Executive) अर्थात् कानूनों के अनुसार शासन चलाने वाली संस्था
  • न्यायपालिका (Judiciary) अर्थात् कानूनों के अनुसार विवादों का समाधान करने वाली संस्था

विधायिका (Legislature)

विधायिका का कार्य कानूनों का निर्माण करना है। राजतंत्रीय प्रणाली (Monarchial system) में यह कार्य आमतौर पर राजा के हाथ में होता था तथा राजा की इच्छाओं को ही कानून का दर्जा प्राप्त था। धर्मतंत्रीय शासन प्रणाली (Theocratic system) में धार्मिक ग्रंथों को ही कानून तथा धर्म के सर्वोच्च पदाधिकारियों को कानूनों का अंतिम व्याख्याकार माना जाता था, क्योंकि वे ही बताते थे कि कानून क्या है? यदि यूनान के प्राचीन नगर राज्यों के उदाहरण छोड़ दें तो आधुनिक काल से पूर्व मोटे तौर पर कानूनों का निर्माण इसी रीति से होता रहा।

आधुनिक काल में लोकतंत्र की स्थापना के बाद माना गया कि कानूनों का निर्माण जनता की इच्छाओं के अनुसार होना चाहिये। स्विट्जरलैंड जैसे कुछ देशों में कोशिश की जाती है कि जनता की इच्छाओं को सीधे तौर पर जान लिया जाए। इसके लिये वहाँ कुछ विशेष व्यवस्थाएँ प्रचलित हैं, जैसे- पहल ( Initiative) तथा जनमतसंग्रह (Referendum)। किंतु सामान्यतः जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की अधिकता के कारण व्यावहारिक तौर पर यह संभव नहीं होता कि सारी जनता की राय जानी जा सके। इसलिये आजकल अधिकांश देशों में प्रतिनिधि लोकतंत्र (Representative Democracy) के माध्यम से विधायिका का गठन किया जाता है। इसके अंतर्गत एक क्षेत्र विशेष का जनसमुदाय अपने एक प्रतिनिधि को चुनकर विधायिका या विधानमंडल में भेजता है तथा सभी क्षेत्रों से चुनकर आए ऐसे प्रतिनिधि आपसी सहमति से कानूनों का निर्माण करते हैं। चूँकि ये सब प्रतिनिधि जनता द्वारा इसी उद्देश्य के लिये चुने जाते हैं, इसलिये मान लिया जाता है कि इनकी सहमति से निर्मित कानून वस्तुतः जनता की इच्छा के अनुसार ही बनाए गए हैं।

वर्तमान राजनीतिक व्यवस्थाओं में विधायिका आमतौर पर दो सदनों (Two houses) से मिलकर बनती है, जैसे भारत में लोकसभा और राज्यसभा । इनमें से एक सदन जनता द्वारा सीधे चुना जाता है। और उसकी कानूनों के निर्माण में प्रमुख भूमिका होती है। भारत में लोकसभा इसी भूमिका में है। दूसरे सदन की जरूरत मुख्यतः उन देशों में होती है, जो संघात्मक ढाँचे (Federal Structure) के अनुसार संगठित होते हैं। संघात्मक ढाँचे को सुरक्षित बनाए रखने के लिये इस दूसरे सदन में सभी राज्यों या प्रांतों के कुछ सदस्यों को लिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘सीनेट’ और भारत में ‘राज्यसभा’ की यही भूमिका है। चूँकि अधिकांश कानूनों के निर्माण के लिये इस सदन की भी सहमति आवश्यक होती है, इसलिये इस सदन की उपस्थिति से यह सुनिश्चित होता है कि केंद्र सरकार राज्यों की शक्तियों को छीन न ले। ध्यातव्य है कि ब्रिटेन की राजनीतिक व्यवस्था इसका एक महत्त्वपूर्ण अपवाद है। वहाँ की राजनीतिक प्रणाली एकात्मक (Unitary) है, इसलिये वस्तुतः वहाँ दूसरे सदन की जरूरत नहीं है किंतु तब भी वहाँ लॉर्ड्स सभा (House of Lords) के रूप में दूसरा सदन रखा गया है। हालाँकि उसका मूल कार्य अपनी परंपराओं को सुरक्षित रखना तथा कुछ अतिविशिष्ट व गण्यमान्य लोगों को संसद में शामिल होने का मौका देना है, न कि प्रांतों या स्थानीय इकाइयों के अधिकारों की रक्षा करना।

जहाँ तक भारतीय विधायिका (Indian Legislature) का प्रश्न है, यह संघात्मक ढाँचे (Federal Structure) पर आधारित है। केंद्र और विभिन्न राज्यों की विधायिकाएँ संविधान में निर्दिष्ट अपने – अपने क्षेत्रों के लिये विधान बनाती हैं। केंद्रीय विधायिका या संसद (Parliament) द्विसदनीय (Bicameral) है प्रचलित भाषा में इसके दो सदनों में से ‘लोकसभा’ को निचला सदन तथा राज्यसभा को उच्च सदन कहते हैं ( हालाँकि संविधान में इस शब्दावली का प्रयोग नहीं किया गया है) ‘राज्यसभा का गठन कुछ हद तक अमेरिकी सीनेट की तरह राज्यों को प्रतिनिधित्व देने के लिये है और कुछ हद तक ब्रिटेन के ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’ की तरह गण्यमान्य नागरिकों को विधायिका का हिस्सा बनाने के लिये । राज्यों या प्रांतों की विधायिकाएँ आमतौर पर एकसदनीय (Unicameral) हैं। इस सदन को ‘विधानसभा’ कहते हैं। संविधान में व्यवस्था है कि यदि किसी राज्य विशेष में ज़रूरत महसूस की जाए तो दूसरे सदन के तौर पर ‘ विधानपरिषद’ की स्थापना की जा सकती है। विधायिका के एक अंग के रूप में भारतीय राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयकों (Bills) पर अपनी सहमति प्रदान करता है।

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