शासन के अंग : न्यायपालिका | Organs of Government : Judiciary

इस लेख में हम शासन के अंग : न्यायपालिका के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

न्यायपालिका (Judiciary)

शासन का तीसरा अंग न्यायपालिका (Judiciary) कहलाता है। न्यायपालिका के कई कार्य हैं। इसका प्रमुख कार्य यह है कि विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों के अनुसार विभिन्न विवादों का समाधान करे किंतु, आजकल न्यायपालिका की भूमिका काफी हद तक विधायिका के समान भी होने लगी है। इसका कारण यह है कि कई कानून इतने जटिल और अस्पष्ट होते हैं कि न्यायपालिका को उनकी मौलिक व्याख्या करनी पड़ती है। ये व्याख्याएँ स्वतः कानून का दर्जा प्राप्त कर लेती हैं, जिन्हें न्यायाधीश- निर्मित-कानून (Judge made laws) या निर्णय – कानून (Case laws) कहते हैं। वर्तमान समय में इन्हें कानूनों की एक पृथक् शाखा के रूप में महत्त्व दिया जाता है। ध्यातव्य है कि उच्च स्तर के न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णय निचली अदालतों के लिये पूर्वनिर्णय ( Precedent) होते हैं तथा उनके लिये बाद के किसी भी समान मामले में उन पूर्वनिर्णयों (Precedents) को आधार बनाना ज़रूरी होता है।

न्यायपालिका की शक्तियाँ (Powers of Judiciary)

न्यायपालिका की शक्तियाँ इस आधार पर तय होती हैं कि शासन का स्वरूप कैसा है? साधारणत: एकात्मक (Unitary) शासन प्रणाली में न्यायपालिका कमज़ोर होती है तथा संसद की शक्ति बहुत अधिक होती है। ब्रिटेन की राजनीतिक प्रणाली इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है किंतु संघात्मक (Federal) प्रणालियों में न्यायपालिका की शक्ति हमेशा अधिक होती है। उन्हें केंद्र और प्रांतों के बीच उत्पन्न होने वाले वैधानिक विवादों का समुचित समाधान करने के लिये यह शक्ति दी जाती है कि वे केंद्रीय विधायिका द्वारा निर्मित कुछ कानूनों को भी इस आधार पर अवैध घोषित कर कि वे संघात्मक प्रणाली या संविधान की मूल भावना के विरुद्ध हैं। अमेरिका और भारत के सर्वोच्च न्यायालयों को यह शक्ति प्राप्त है, इसलिये वे अत्यंत ताकतवर हैं। जिन देशों में लिखित संविधान होता है, वहाँ संविधान का सटीक निर्वचन ( Exact Interpretation) करने का दायित्व भी न्यायपालिका के पास होता है, जिससे उसकी शक्ति और बढ़ जाती है। पुनः जिन देशों के संविधान नागरिकों को मूल अधिकारों की गारंटी देते हैं, वहाँ न्यायपालिका मूल अधिकारों की संरक्षक होती है और न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review) आदि की उसकी शक्ति बढ़ जाती है। इस संबंध में ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (Procedure established by Law ) तथा ‘यथोचित विधि प्रक्रिया’ ( Due Process of Law) का विवाद बहुत रोचक है। इनमें से पहला सिद्धांत संसद को न्यायपालिका से ताकतवर बनाता है (जैसे इंग्लैंड में), जबकि दूसरा सिद्धांत न्यायपालिका को सर्वोच्चता प्रदान करता है (जैसे अमेरिका तथा

भारत में ) ।

भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary) अत्यंत शक्तिशाली है। भारतीय राजव्यवस्था का ढाँचा विधायिका और कार्यपालिका के स्तर पर भले ही संघात्मक (Federal) हो, न्यायपालिका के स्तर पर यह एकात्मक (Unitary) होने के नज़दीक है, क्योंकि केंद्र और राज्यों के स्तर पर भिन्न-भिन्न न्यायपालिकाएँ नहीं हैं। राज्यों के उच्च न्यायालय (High courts) सीधे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme court) के अधीन होते हैं। इसके अलावा मूल अधिकारों के संरक्षक (Guardian of fundamental rights) के तौर पर तथा संविधान के निर्वचन ( Interpretation) की अंतिम शक्ति रखने के कारण भारतीय न्यायपालिका काफी शक्तिशाली है। न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial review) का अधिकार उसे पहले भी प्राप्त था, अब उसकी व्याख्या संविधान के आधारभूत लक्षणों (Basic structure of Constitution) के एक अंग के रूप में करके न्यायपालिका ने अपनी यह शक्ति और बढ़ा ली है ।

न्यायपालिका नोट्स PDF

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