कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र : कृषि एवं खाद्य प्रबंधन – नोट्स

कृषि एवं खाद्य प्रबंधन नोट्स प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए

कृषि एवं खाद्य प्रबंधन

(आर्थिक समीक्षा, 2023-24)

विगत दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ। यह क्षेत्र, जो कार्यबल का सबसे बड़ा नियोक्ता है, ने देश के सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में 18.8 प्रतिशत (2021-22) अंश के साथ वर्ष 2020-21 में 3.6 प्रतिशत तथा वर्ष 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। पशुधन, डेयरी एवं मत्स्य पालन सहित संबद्ध क्षेत्रों में वृद्धि इस क्षेत्र में समग्र विकास के प्रमुख संचालक रहे हैं।

वर्ष 2014 की एसएएस रिपोर्ट की तुलना में अकेले फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्ति में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. हालांकि किसानों की आय के स्रोतों में विविधता दिखाई दी है।

पशुपालन, डेयरी तथा मत्स्य पालन सहित संबद्ध क्षेत्र लगातार उच्च विकास वाले क्षेत्रों के रूप में उभर रहे हैं। वर्ष 2019-20 को समाप्त हुए पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 8.15 प्रतिशत की सीएजीआर (CAGR ) से बढ़ा है। यह क्षेत्र कृषि परिवारों के समूहों में आय का एक स्थिर स्रोत रहा है, जो उनकी औसत मासिक आय का लगभग 15 प्रतिशत है।

भारत दुनिया के सबसे बड़े खाद्य प्रबंधन कार्यक्रमों में से एक का संचालक है।

कृषि में वर्धित सकल मूल्य (जीवीए)

अर्थव्यवस्था के कुल जीवीए में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 18 प्रतिशत एक दीर्घकालिक प्रवृत्ति है अर्थात 2016-17 से 2021-22 तक लगभग 18 प्रतिशत के आस-पास ही बनी हुई है। हालांकि, कुल जीवीए में कृषि तथा संबद्ध क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2020-21 में बढ़कर 20.2 प्रतिशत और 2021-22 में 18.8 प्रतिशत हो गई।

कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में निवेश

कृषि में पूंजी निवेश एवं इसकी विकास दर के बीच प्रत्यक्ष संबंध है, इस क्षेत्र में उच्च सार्वजनिक एवं निजी निवेश सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रित एवं लक्षित दृष्टिकोण होना चाहिए। किसानों को रियायती संस्थागत ऋण तक उच्च पहुंच तथा निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की अधिक भागीदारी, जिनकी निवेश दरें वर्तमान में कृषि में 2 से 3 प्रतिशत तक कम हैं, कृषि में निजी निवेश को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं।

कृषि संबंधी उत्पादन

वर्ष 2020-21 के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 308.65 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2019-20 की तुलना में 11.5 मिलियन टन अधिक है। पिछले छह वर्षों यानी 2015-16 से 2020-21 के दौरान चावल, गेहूं और मोटे अनाज का उत्पादन क्रमश: 2.7 2.9 और 4.8 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है। इसी अवधि के दौरान दलहन, तिलहन और कपास के लिए सीएजीआर क्रमश: 7.9, 6.1 और 2.8 प्रतिशत रहा है।

खाद्य तेल

भारत प्रमुख तिलहन उत्पादक देशों में से एक है। निरंतर उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति के बाद भारत में तिलहन उत्पादन में वर्ष 2016-17 के बाद से लगातार वृद्धि हुई है। भारत में तिलहन उत्पादन 2015-16 से 2020-21 तक लगभग 43 प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि भारत में तेल उत्पादन अपनी खपत से पिछड़ गया है, जिसके कारण खाद्य तेलों का आयात आवश्यक हो गया है।

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं वनस्पति तेल का नंबर एक आयातक है जैसे-जैसे विकासशील देशों में शहरीकरण बढ़ता हैं, आहार संबंधी आदतों एवं पारंपरिक भोजन पैटर्न के प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की ओर बढ़ने की उम्मीद होती है, जिनमें वनस्पति तेल की मात्रा अधिक होती है। इसलिए, भारत में वनस्पति तेल की खपत उच्च जनसंख्या वृद्धि एवं परिणामी शहरीकरण के कारण उच्च रहने की उम्मीद है। ओईसीडी-एफएओ एग्रीकल्चरल आउटलुक 2021-2030 के अनुसार, भारत को प्रति व्यक्ति वनस्पति तेल की खपत में 2.6 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि को बनाए रखने का अनुमान है, जो 2030 तक 14 किलोग्राम प्रति व्यक्ति तक पहुंच जाएगा, जिससे प्रतिवर्ष 3.4 प्रतिशत की उच्च आयात वृद्धि की आवश्यकता होगी।

सरकार भारत के सभी जिलों में 2018-19 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तिलहन (एनएफएसएम-तिलहन ) की केंद्र प्रायोजित योजना के माध्यम से तिलहन के उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ावा दे रही है। इस योजना के तहत, मूल एवं प्रमाणित बीज का उत्पादन तथा प्रमाणिक बीजों का वितरण एवं नवीनतम उच्च उपज देने वाली किस्मों के बीज मिनीकिटों का प्रबंधन किया जाता है।

देश में खाद्य तेल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन – पाम ऑयल (एनएमईओ ओपी) शुरू किया गया है। इस योजना – के तहत, सरकार पहली बार ताड़ के तेल किसानों को ताजे फलों के गुच्छे (एफएफबी) के लिए मूल्य आश्वासन देगी। इसे व्यवहार्यता मूल्य (वीपी) के रूप में जाना जाएगा, जो किसानों को अंतरराष्ट्रीय कच्चे पाम तेल (सीपीओ) की कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाएगा।

भारत में वर्तमान में केवल 3.70 लाख हेक्टेयर में ही पाम तेल की खेती होती है। अन्य तिलहन फसलों की तुलना में पाम ऑयल प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक तेल का उत्पादन करता है और प्रति हेक्टेयर लगभग 4 टन तेल की उपज होती है। आज भी लगभग 98 प्रतिशत सीजीओ आयात किया जा रहा है। एनएमईओ-ओपी को सरकार की एक बड़ी पहल माना जा सकता है। इस योजना का लक्ष्य 2025-26 तक 11.20 लाख टन एवं 2029-30 तक 28 लाख टन तक प्राप्त करने का है।

चीनी क्षेत्र

भारत की अर्थव्यवस्था के लिए गन्ना एवं चीनी उद्योग कपास के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। यह 5 करोड़ से अधिक किसानों एवं उनके आश्रितों की आजीविका को प्रभावित करता हैं। भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता तथा दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। गन्ने का औसत वार्षिक उत्पादन लगभग 35.5 करोड़ टन है। पिछले कुछ वर्षों में, भारत चीनी आधिक्य राष्ट्र बन गया है। वर्ष 2010-11 के बाद से, उत्पादन वर्ष 2016-17 को छोड़कर खपत से अधिक हो गया है।

किसानों के हितों की रक्षा ‘उचित तथा लाभकारी मूल्य (एफआरपी) द्वारा की जाती है, जो दस वर्षों की अवधि में दोगुनी हो गई है। कुछ राज्य सरकारें एफआरपी से अधिक स्तरों पर राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की घोषणा करती हैं। इसके अतिरिक्त, गन्ना खरीदने वाली चीनी मिलों को गन्ना आरक्षित क्षेत्र के रूप में ज्ञात एक निर्दिष्ट दायरे के भीतर किसानों से फसल खरीदने के लिए अनिवार्य है। इस तरह, गन्ना किसानों का बीमा किया जाता है तथा मूल्य जोखिम से बचाया जाता है।

चीनी सीजन 2020-21 में चीनी सीजन 2019-20 के 59.60 लाख मीट्रिक टन चीनी निर्यात की तुलना में लगभग 70 लाख मीट्रिक टन चीनी का निर्यात किया गया है।

मूल्य नीति न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)

सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर तथा राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के मतों पर विचार करने के बाद 22 अनिवार्य कृषि फसलों का एमएसपी तय करती है। 22 अनिवार्य फसलों में 14 खरीफ फसलें शामिल हैं जैसे धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, अरहर (अरहर), मूंग, उड़द, मूंगफली, सोयाबनी (पीला), सूरजमुखी के बीज, तिल, नाइजरसीड, कपास और 6 रबी फसलें जैसे गेहूं, जौ, चना, मसूर (मसूर), रेपसीड और सरसों, कुसुम और 2 व्यावसायिक फसलें जैसे जूट और कोपरा। इसके अलावा, तोरिया और छिलके वाले नारियल के लिए एमएसपी भी क्रमश: रेपसीड और सरसों और कोपरा के एमएसपी के आधार पर तय किया जाता है।

फसल विविधीकरण

फसल विविधीकरण कार्यक्रम (सीडीपी) मूल हरित क्रांति राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी यूपी में वर्ष 2013-14 से धान के स्थान पर कम पानी आवश्यकता वाली फसलों जैसे तिलहन, दलहन, मोटे अनाज, पोषक अनाज, कपास आदि की खेती को स्थानांतरित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की उप योजना के रूप में लागू किया जा रहा है। वर्ष 2015-16 से लागू सीडीपी तंबाकू उगाने वाले राज्यों, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में वैकल्पिक फसलों/ फसल प्रणाली में तंबाकू की खेती के तहत क्षेत्रों को स्थानांतरित करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

भारत में फसल विविधीकरण को मूल्य नीति के माध्यम से भी लक्षित किया गया है

कृषि संबंधी ऋण

वर्ष 2020-21 के लिए लक्षित कृषि संबंधी ऋण 15,00,000 करोड़ रुपये की तुलना में ऋण प्रवाह 15,75,398 करोड़ रुपये था। वर्ष 2021-22 के लिए कृषि संबंधी ऋण लक्ष्य 16,50,000 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है और 30 सितंबर, 2021 तक इस लक्ष्य के समक्ष रु. 7.36.589.05 करोड़ की राशि वितरित की जा चुकी है।

जल एवं सिंचाई

जल कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जो देश में वर्तमान जल उपयोग का लगभग 80 प्रतिशत है। शुद्ध सिंचित क्षेत्र का हिस्सा देश में कुल शुद्ध बुआई की गई क्षेत्र का लगभग 49 प्रतिशत है और शुद्ध सिंचित क्षेत्र में से लगभग 40 प्रतिशत नहर प्रणाली के माध्यम से और 60 प्रतिशत भूजल के माध्यम से सिंचित है।

देश में भूजल विकास का समग्र चरण ( वार्षिक भूजल ड्राफ्ट और शुद्ध वार्षिक भूजल उपलब्धता का अनुपात) 63 प्रतिशत है। यह अनुपात जो भूजल के निष्कर्षण की दर को दर्शाता है, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान राज्यों में बहुत अधिक (100 प्रतिशत से अधिक) है। हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ और पुडुचेरी 70-100 प्रतिशत के बीच के अनुपात के साथ मध्यम श्रेणी में आते हैं। इन राज्यों को मध्यम तथा दीर्घकालिक भूजल पुनर्भरण और संरक्षण योजनाओं दोनों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

सूक्ष्म सिंचाई के तहत बढ़ा हुआ आवृत क्षेत्र जल संरक्षण का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है।

मीठी क्रांति

देश में एकीकृत कृषि प्रणाली (आईएफएस) के हिस्से के रूप में मधुमक्खी पालन के महत्व को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहर मिशन (एनबीएचएम) के लिए तीन साल (2020-21 से 2022-23) के लिए 500 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी। मिशन की घोषणा एएनबी योजना के एक भाग के रूप में की गई थी। एनबीएचएम का लक्ष्य ‘मीठी क्रांति’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश में वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन के समग्र प्रचार और विकास के लिए है, जिसे राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (एनबीबी) के माध्यम से लागू किया जा रहा है। 17 दिसंबर, 2021 तक एनबीएचएम के तहत 88.87 करोड़ रुपये की सहायता के लिए कुल 45 परियोजनाओं को मंजूरी / स्वीकृति किया गया है। वर्ष 2013-14 से वर्ष 2019-20 के बीच भारत के शहद के निर्यात में लगभग 110 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

स्थिति आकलन सर्वेक्षण

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 1 जनवरी, 2019 से 31 दिसंबर, 2019 की अवधि के दौरान किए गए सर्वेक्षण के अपने 77वें दौर में, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की भूमि और पशुधन जोत और कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन पर एक सर्वेक्षण किया। रिपोर्ट सितंबर, 2021 में जारी की गई। पिछला एसएएस 2014 में प्रकाशित हुआ था।

एसएएस रिपोर्ट, कृषि परिवारों के विभिन्न अन्य सामाजिक-आर्थिक पहलुओं के अलावा, उनकी आय और इसके स्रोतों पर अंतर्दृष्टि भी प्रकट करती है। एसएएस 2021 से पता चलता है कि भुगतान किए गए खर्च के दृष्टिकोण के अनुसार प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय रु. 10218 है। इसी दृष्टिकोण से अनुमानित 2014 की अंतिम एसएएस रिपोर्ट के अनुसार प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय रु. 6426 थी।

वर्ष 2014 की पिछली एसएएस रिपोर्ट की तुलना में अकेले फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई । 37 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ फसल आय किसान की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनी हुई है, हालांकि किसानों की आय के स्रोतों में विविधता दिखाई दे रही है। घरेलू स्वामित्व वाले जोत का औसत आकार वर्ष 2003 में 0.725 हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2013 में 0.592 हेक्टेयर और आगे 0.512 हेक्टेयर हो गया है।

PDF कृषि एवं खाद्य प्रबंधन

नीचे “कृषि एवं खाद्य प्रबंधन” – Notes PDF है जो PDFinHindi.in द्वारा तैयार किया हुआ है ।

error: